Home श्री बालोपासना श्री सिद्धिविनायक




1.) सोमनाथ ज्योतिर्लिंगगुजरात


सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग है ।सोमनाथ मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है, कि जब चंद्रमा को प्रजापति दक्ष ने श्राप दिया था, कि तुम्हारा शरीर धीरे-धीरे क्षीण हो जाएगा। तब राजा दक्ष के श्राप के बाद चंद्रमा का शरीर धीरे-धीरे नष्ट होने लगा। श्राप के कारण, दुनिया के सभी जीव जंतुओ को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा। सभी देवतागण चिंतित होने लगे और सभी देवता चंद्र देवता के साथ मिलकर ब्रह्मा जी के पास गए उन्होंने ब्रह्मा जी को पूरी बात बताई। ब्रह्मा जी ने चन्द्रदेव को, सभी देवताओं के साथ मिलकर भगवान शिव की आराधना करने को कहा। तब चंद्रदेव ने इसी स्थान पर तप कर, श्राप से मुक्ति पाई थी।

सभी देवताओं के साथ मिलकर 6 महीनों तक महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। मंत्र जाप से प्रसन्न होकर भगवान शिव वहां पर प्रकट हुए और चंद्रमा को वर दीया कि माह के 15 दिन तुम्हारा शरीर धीरे-धीरे क्षीन होगा जिसे लोग कृष्ण पक्ष के नाम से जानेंगे और माह के 15 दिन तुम्हारा शरीर थोड़ा-थोड़ा बढ़ते हुए पूरा होगा और इस पक्ष को लोग शुक्ल पक्ष के नाम से जानेंगे। इस तरह से राजा दक्ष का श्राप भी रह गया और चंद्रमा को अपने कष्ट से मुक्ति भी मिली गयी और इस सबके बाद सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से प्रार्थना की कि आप यहीं पर निवास करें तभी से भगवान शिव सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से वहीं पर निवास करते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि सोमनाथ शिवलिंग की स्थापना स्वयं चन्द्र देव ने की थी।


2.) मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंगआन्ध्र प्रदेश


श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के पर्वत कैलाश के समान कहा गया है। महाभारत, शिवपुराण तथा पद्मपुराण आदि धर्मग्रंथों में इसकी महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। कहते हैं कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय और गणेश में पहले किसका विवाह होगा, इस पर कलह होने लगी। शर्त यह रखी गई कि जो भी पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, उसी का विवाह पहले किया जायेगा। बुद्धि के सागर श्री गणेश जी ने माता-पिता की परिक्रमा कर पृथ्वी की परिक्रमा के बराबर फल प्राप्त किया। जब कार्तिकेय परिक्रमा कर वापस लौटे तब देवर्षि नारद जी ने उन्हें सारा वृतांत सुनाया और कुमार कार्तिकेय ने क्रोध के कारण हिमालय छोड़ दिया और क्रौंच पर्वत पर जा कर रहने लगे।

कोमल हृदय से युक्त माता-पिता पुत्र स्नेह में क्रौंच पर्वत पहुंच गए। कार्तिकेय को, जब अपने माता-पिता के आने की सूचना मिली तो वह, वहां से तीन योजन दूर चले गए। कार्तिकेय के क्रौंच पर्वत से चले जाने पर ज्योतिर्लिंग के रूप में शिव-पार्वती प्रकट हुए। तभी से भगवन शिव और माता पार्वती मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुए। मल्लिका अर्थात पार्वती और अर्जुन अर्थात शिव। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पूजा से अवश्मेध यज्ञ के बराबर का फल प्राप्त होता है।



3.) महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: उज्जैन, मध्य प्रदेश



भारत के हृदयस्थल मध्यप्रदेश में उज्जैन के मालवा क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन नगर है जो की क्षिप्रा नदी के पूर्वी किनारे पर वसा हुआ है। प्राचीन काल में इसे उज्जयिनी कहा जाता था। जैसा की महाभारत में वर्णित है उज्जयिनिं नगर अवन्ती राज्य की राजधानी था। उज्जैन सात पवित्र तथा मोक्षदायिनी नगरियों में से एक है इन मोक्षदायिनी नगरियो के नाम इस प्रकार हैं – अयोध्या, वाराणसी, मथुरा, हरिद्वार, द्वारका एवं कांचीपुरम। उज्जैन पवित्र कुम्भ मेला 12 वर्षों में एक बार लगता है।

पुण्य सलिला क्षिप्रा के तट के निकट भगवान शिव महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अपना एक अलग स्थान है। कहा जाता है कि जो महाकाल का भक्त होता है, उसका काल कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार है, अवंति नगरी में शुभ कर्मपरायण तथा सदा वेदों के स्वाध्याय में लगे रहने वाला एक वेदप्रिय नामक ब्राह्मण रहता था। जिसके चार संस्कारी और आज्ञाकारी पुत्र थे। उस समय रत्नमाला पर्वत पर दूषण नामक एक असुर ने धर्मविरोधी कार्य आरंभ कर रखा था। सबको स्थानों को नष्ट कर देने के बाद उस असुर ने अवंति (उज्जैन) पर भारी सेना लेकर आक्रमण कर दिया था। अवंति नगर के सभी निवासी जब उस संकट में घबराने लगे, तब वेदप्रिय और उसके चारों पुत्रों के साथ सभी नगरवासी शिवजी के पूजन में तल्लीन हो गए। भगवान शिवजी के पूजन में तल्लीन होने पर भी, दूषण ने ध्यानमग्न नगर वासियों को मारने का आदेश दिया। तब भी वेदप्रिय के पुत्रों ने सभी नगर वासियों को भगवान शिव के ध्यान में मग्न रहने को कहा।

असुर दूषण ने देखा कि यह डरने वाले नहीं हैं तो इन्हें मार दिया जाए और जैसे ही वह आगे बढ़ा, त्योंहि शिव भक्तों द्वारा पूजित उस पार्थिवलिंग से विकट और भयंकर रूपधारी भगवान शिव प्रकट हुए और वहा उपस्थित सभी दुष्ट असुरों का नाश कर, महाकाल के रूप में विख्यात हुए। शिव ने अपने हुंकार से सभी दैत्यों को भस्म कर उनकी राख को अपने शरीर पर लगाया। इसी कारण से इस मंदिर में महाकाल को भस्म लगाई जाती है। महाकाल मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के गर्भगृह में निकास का द्वार दक्षिण दिशा की ओर से है। जो की तांत्रिक पीठ के रूप में इसे स्थापित करता है।



4.) ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग: उत्तरी भारत


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के शहर इंदौर के समीप स्थित है। जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, वहाँ पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी के बहने से यहां ऊं का आकार बनता है। ऊं शब्द की उत्पति भगवान ब्रह्मा जी के मुख से हुई है। इसलिए किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊं के साथ किया जाता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ॐकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से पुकारा जाता है।

यह भी कहा जाता है कि जब वराह कल्प में जब सारी पृथ्वी जल में मग्न हो गई थी तो उस वक्त भी मार्केंडेय ऋषि का आश्रम जल से अछूता था। यह आश्रम नर्मदा के तट पर ओंकारेश्वर में स्थित है। ओंकारेश्वर का निर्माण नर्मदा नदी से स्वतः हुआ है। शास्त्र मान्यता है कि कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले, किन्तु जब तक वह ओंकारेश्वर महादेव आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहां नहीं चढ़ाता, तब तक उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं।

ओंकारेश्वर में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है। इन दोनों शिवलिंगों को एक ही ज्योतिर्लिंग माना जाता है। पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या, देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की थी कि वे विंध्य क्षेत्र में स्थिर होकर निवास करें। भगवान शिवजी ने बात मान ली, वहां स्थित एक ही ओंकारलिंग दो स्वरूपों में विभक्त हो गया। प्रणव के अंतर्गत जो सदाशिव विद्यमान हुए, उन्हें ओंकार नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार से पार्थिवमूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई थी, उसे ही परमेश्वर अथवा अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं।

5.) केदारनाथ ज्योतिर्लिंग: उत्तराखंड


केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भी भगवान शिव के १२ प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में आता है। यह उत्तराखंड में हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है। बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ धाम के मार्ग पर स्थित है। केदारनाथ समुद्र तल से ३५८४ मीटर की ऊँचाई पर है। केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी पाया जाता है। यह तीर्थ भगवान शिव को अति प्रिय है। जिस प्रकार का महत्व भगवान शिव ने कैलाश को दिया है, उसी प्रकार का महत्व शिव जी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है।

6.) भीमशंकर ज्योतिर्लिंग: डाकिनी, महाराष्ट्र



श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। श्री भीमाशंकर के शिवलिंग को ही शिव का छठा ज्योतिर्लिंग कहते हैं। श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। भीमाशंकर मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धा से भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर का दर्शन प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद करता है, उसके सभी जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं और उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं।

श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार है कि पूर्व समय में भीम नामक एक महाबलशाली राक्षस हुआ करता था। वह राक्षस महाकाय कुंभकर्ण और कर्कट की पुत्री कर्कटी से उत्पन्न हुआ था। उस राक्षस ने संकल्प लेकर ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने हेतु एक हजार वर्ष तक तप किया। उसकी तपस्या से पितामह ब्रह्माजी प्रसन्न हो गए। ब्रह्माजी भीम को अतुलनीय बल प्रदान किया। ब्रह्मा के वरदान के कारण भीम ने इंद्र सहित सभी देवताओं को हरा दिया।



7.) विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग: काशी, उत्तर प्रदेश


काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह उत्तर प्रदेश के काशी शहर में स्थित है। गंगा तट स्थित काशी विश्वनाथ शिवलिंग का दर्शन हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र है। सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व बताया गया है। काशी की मान्यता है कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा। क्योकि इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को फिर से उसके स्थान पर पुन: रख देंगे।

काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से जीवन से मुक्ति मिल जाती है। भगवान रूद्र मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिसके कारण वह सांसारिक आवागमन से मुक्त हो जाता है, चाहे वह मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो। काशी विश्वनाथ शिवलिंग सबसे पुराने शिवलिंगों में से एक कहा जाता है। यह किसी मनुष्य की पूजा, तपस्या आदि से प्रकट नहीं हुआ, बल्कि यहां निराकार परब्रह्म परमेश्वर ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में साक्षात् विराजमान है।


8.) त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग: नासिक, महाराष्ट्र


त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग ब्रह्मागिरि नामक पर्वत पर है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम होता है। भगवान भोलेनाथ का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है और समस्त कष्ट को हरने वाला है।

त्र्यंबकेश्वर मंदिर के अंदर एक गङ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, जिन्‍हें भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतीक माना जाता हैं। त्र्यंबकेश्‍वर की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इस ज्‍योतिर्लिंग में भगवान ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों ही विराजित हैं। काले पत्‍थरों से बना ये मंदिर देखने में बहुत ही सुंदर है।


9.) वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग: झारखण्ड



श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का समस्त शिवलिंगों की गणना में नौवां स्थान बताया गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर स्थित है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है। यह स्थान झारखंड राज्य के देवघर जिला में पड़ता है। परंपरा और पौराणिक कथाओं से पता चलता है की देवघर स्थित श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को ही प्रमाणिक मान्यता है। हर साल लाखों श्रद्धालु सावन के माह में सुलतानगंज से गंगाजल लाकर यहां श्री श्रीवैद्यनाथ को चढ़ाते हैं।

श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग राक्षस राज रावण के द्वारा स्थापित है। यहां माता सती का हृदय गिरा था। इसी कारण इसे मनोकामना ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार विश्व विजयी बनने के लिए रावण शिव जी का स्वरूप ज्योतिर्लिंग को लंका लेकर आ रहा था, तब दैवी इच्छा के अनुसार शिवलिंग रास्ते में ही रख दिया गया और तभी से यह देव स्थान वैद्यनाथ धाम कहलाया है।


10.) नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: बड़ौदा, गुजरात

श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग बड़ौदा में गोमती द्वारका से बारह-तेरह मील की दूरी स्थित है। धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। भगवान शिव जी का एक अन्य नाम नागेश्वर भी है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है।

श्री नागेश्वर शिवलिंग की स्थापना के संबंध में कथा इस प्रकार है कि एक धर्मात्मा, सदाचारी और शिव जी का अनन्य भक्त था, उसका नाम सुप्रिय था। एक समय वह नौका में पर सवार होकर समुद्र मार्ग से कहीं जा रहा था, उस समय दारूक नामक एक भंयकर राक्षस ने उसकी नौका पर आक्रमण कर दिया, सुप्रिय सहित नौका में सवार सभी लोगो को बंदी बना लिया। पर सुप्रिय ने बंदी गृह में भी भगवान शिव भक्ति नहीं छोड़ी और भोलेनाथ ने वहां ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए और सुप्रिय को अपना एक पाशुपतास्त्र दिया। उस अस्त्र की सहयता से सुप्रिय ने राक्षसों का अंत किया और अंत में वह शिवलोक को प्राप्त हुआ।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा के साथ यहां दर्शन के लिए आता है उसकी सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

11.) रामेश्वर ज्योतिर्लिंग: तमिलनाडु

यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाड जिले में स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में भी आता है। इस ज्योतिर्लिंग के विषय में यह मान्यता है कि रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को रामेश्वरम कहा गया है।

श्री रामेश्वरम् की स्थापना के विषय में कहा जाता है कि श्रीराम ने जब रावण के वध के लिए लंका पर चढ़ाई की थी, तब विजयश्री की प्राप्ति हेतु उन्होंने श्री रामेश्वरम में शिव लिंग की स्थापना की। एक अन्य शास्त्रोक्त कथा भी प्रचलित है। रावण वध के बाद उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। उससे मुक्ति के लिए ऋषियों ने ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन शिवलिंग की स्थापना कर श्रीराम चंद्र को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त कराया 

था

12.) घृश्णेश्वर ज्योतिर्लिंग: महाराष्ट्र।


श्री घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इनको घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन लोक-परलोक दोनों के लिए अमोघ फलदाई है। दूर-दूर से लोग महादेव के दर्शन को आते हैं और आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं। बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं। यहीं पर श्री एकनाथजी गुरु व श्री जनार्दन महाराज जी की समाधि बनी हुई है।

श्री घुश्मेश्वर महादेव की कथा इस प्रकार है कि देवगिरि पर्वत के समीप ब्रह्मवेता भारद्वाज कुल का एक ब्राह्मण सुधर्मा निवास करता था। सुधर्मा की भी कोई संतान न थी। इसी कारण से उनकी धर्मपत्नी सुदेहा बड़ी दुखी रहती थी। संतान हेतु सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा के साथ अपने पति का दूसरा विवाह करवा दिया। सुधर्मा ने विवाह से पूर्व अपनी पत्नी को बहुत समझाया था कि इस समय तो तुम अपनी बहन से प्यार कर रही हो, किंतु जब उसके पुत्र उत्पन्न होगा तो तुम इससे ईष्र्या करने लगोगी और ठीक वैसा ही हुआ।

ईष्र्या में आकर सुदेहा ने अपनी बहन के पुत्र की हत्या कर दी, पर घुश्मा इस घटना से विचलित नहीं हुई और शिव भक्ति में लीन हो गई। उसकी भावना से महादेव जी ने प्रसन्न होकर उसके पुत्र को पुनः जीवित कर दिया और घुश्मा द्वारा पूजित पार्थिव लिंग में सदा के लिए विराजमान हुए और घुश्मा के नाम को अमर कर महादेव ने इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा।

No comments:

Post a Comment